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लॉकडाउन के बाद सुप्रीम कोर्ट का घेराव किया जायेगा : उदित राज

लॉकडाउन के बाद सुप्रीम कोर्ट का घेराव किया जायेगा : उदित राज

· 10 साल आरक्षण का प्रावधान केवल राजनीति के लिए किया गया था: उदित राज

· आज नौकरियां समाप्त हो गयी: उदित राज

· दलितों का इस्तेमाल केवल वोट बैंक के रूप में किया गया

पूर्व लोकसभा सांसद व कांग्रेस नेता उदित राज ने कहा आज एक विडियो जारी करते हुए कहा कि मनुपालिका भाई-भतीजावाद से ग्रसित है । मैंने 3 दिसम्बर 2018 को सरकार में रहते हुए सुप्रीम कोर्ट का घेराव किया, हम आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट की मनमानी नहीं चलने देंगे । कोलेजियम सिस्टम नहीं चलेगा और लाकडाउन खत्म होते ही सुप्रीम कोर्ट का घेराव करेंगे।

उदित राज ने आगे कहा कि पिछले महीने सुप्रीम कोर्ट ने आंध्र प्रदेश के एक मामले में जजमेंट दिया जिसमें यह कहा था कि जिनको आरक्षण बहुत दिनों से मिल रहा है उनको अनुच्छेद 341 के तहत जिसमें अनुसूचित जातियां शामिल होती हैं आरक्षण के मकसद से उन्हें निकाल बाहर करना चाहिए अर्थात जिन्हें पहले से ही आरक्षण मिल रहा है अब उन्हें नहीं मिलना चाहिए। उन्होंने कहा कि यह संभव हो भी जाएगा, जैसा कि वो कई सालों से कहते आ रहे हैं लेकिन समाज में चेतना तो आयी लेकिन ग़लत दिशा में चेतना है। कहा जाता था कि संविधान को कोई हाथ लगा के देख तो ले, फ़िर भी संविधान को खूब हाथ लगाया गया, न्यायपालिका संविधान से बिल्कुल अलग हट गई, न्यायपालिका के ऊपर अब किसी का नियंत्रण नहीं है.

उन्होंने कहा कि जब से भाजपा की सरकार सत्ता में आयी है वो आरक्षण लागू नहीं कर पा रहे हैं, तो हम उनका क्या बिगाड़ पाए हैं। जो भ्रांति है कि बाबा साहेब का संविधान को कोई कुछ नहीं कर सकता है अब वो भ्रांति टूट जानी चाहिए और जिस तरह से शिक्षण संस्थाओं में आरक्षण समाप्त हुआ है सरकार से ज्यादा निजी क्षेत्र में यूनिवर्सिटीज, कॉलेज आ गए हैं, क्या वहाँ आरक्षण है ? चाहे गलगोटिया, अशोका या जिंदल, लवली जैसी बड़ी यूनिवर्सिटी जहाँ लाखों स्टूडेंट्स पढ़ रहे हैं, तो अब तो भ्रम टूट जाना चाहिए। आगे उन्होंने कहा कि प्राइवेट सेक्टर अंडरटेकिंग थी जहाँ ज्यादा रोज़गार मिलता था उसका भी सरकार ने धीरे धीरे नाश कर दिया है। बीपीसीएल जो कि पेट्रोल की कंपनी है जो कि बहुत लाभ में है उसका भी निजीकरण हो रहा है। बीएसएनएल, विदेश संचार निगम लिमिटेड, एलआईसी हो या रेलवे सभी का धीरे धीरे सरकार निजीकरण कर रही है जिससे नौकरियां बहुत कम हो गयी हैं।

उदित राज ने सवाल उठाते हुए कहा कि जो अम्बेडकर वादी हैं, फूले-साहू को मानने वाले हैं और जो इस गलतफहमी के अंदर जिंदा हैं कि हम इस संविधान में हैं कोई हमारा क्या बिगाड़ सकता है तो अब उनको समझ में आ जाना चाहिए कि जाकर अगल-बगल, समाज में, अपने बिरादरी और रिश्तेदारी का दौरा कर लें, जांच पड़ताल कर लें कि जो ग्रेजुएट और पोस्ट ग्रेजुएट हो चुके हैं, डिग्री भी ले रखें है क्या उनको अब नौकरी मिल पा रही है ? जबकि 15-20 वर्ष पूर्व उनको नौकरी मिल जाती थी जो पढ़ने में अव्वल होते थे चाहे वो लड़का हो या लड़की लेकिन आज के समय मे नौकरी न मिलने से वही लोग परेशानियों का सामना कर रहे हैं। और इसी बीच ये कहा जाता है कि आरक्षण तो केवल 10 साल तक के लिये ही है। क्योंकि यह राजनीति का आरक्षण है और एड्मिसन के समय में या नौकरी में सीधी भर्ती में और उन्नति में आरक्षण की कोई अवधि नहीं है वहीं शिक्षकों के भर्ती में भी कोई समय की सीमा नहीं है।

राजनीति के लिए केवल 10 साल तक के लिए कहा गया था और इस सोंठ के साथ कि 10 साल के अंदर इस देश के अंदर जाति व्यवस्था टूट जाएगी तब जाति की जरूरत नहीं पड़ेगी। लेकिन जैसा कि देखा जा रहा है धारणतंत्र के आधार पर जाति व्यवस्था मजबूत कर दिया गया है।

उन्होंने कहा कि जिन लोगों को यह गलतफहमी है कि आरक्षण केवल 10 साल के लिए ही है तो बता दें कि वो सिर्फ राजनीति के क्षेत्र में है और हर साल 10 साल बढ़ा भी दिया जाता है लेकिन अन्य कि क्षेत्रों में नही है। वहीं जिनको यह गलतफहमी है कि संविधान हमारा है कुछ नहीं हो सकता वह भी गलतफहमी खत्म हो जानी चाहिए।

बहुजन आंदोलन से उन्होंने सवाल करते हुए कहा कि उन्होंने लक्ष्य बहुत बड़ा रखा था कि उनकी सत्ता आएगी तो वो सब कुछ देंगें लेकिन जो उनके पास था वो भी चला गया। साथ ही दिन प्रतिदिन और भी लड़ाई के तरीके जैसे धरना, प्रदर्शन, संसद,या चुनाव के दौरान कोई राजनीतिक मुद्दे बनाना या जो कुछ है और लिया जाना दोनो ही नहीं कर पाए उल्टा अंत मे सब लूट गया। वर्षों से केवल सभी लूटें है। लोग कहते हैं कि जागृति हुई है तो जागृति की प्रगति दिखनी भी चाहिए थी। बड़े लेखक पैदा होते, मीडिया हाउस खड़े होते, बड़े ठेकेदार, बिल्डर, इंडस्ट्रीलिस्ट, अर्टिस्ट होने चाहिए थे, फ़िल्म इंडस्ट्री में भी जाना चाहिए था साथ ही क्रिएटिव होना चाहिए था लेकिन ऐसा कुछ भी नही हो पाया। इतिहास उठा कर देखो तो पूरी फौज बैठा के स्वर्णो के खिलाफ़, फूले-साहू के बारे में अच्छे से अच्छा और तीखे से तीखा भाषण दे दिया। 5 साल में चुनाव के दौरान आखिरी 3 महीने जब रह जाते हैं तब बात करी जाती वोटबैंक के लिए लेकिन 5 साल जब अपनी ऊर्जा का इस्तेमाल नहीं किया तो स्वयं भस्मासुर कहलायेंगे। बहुजन आंदोलन और पार्षद 1997 से लड़ रहे हैं, लेकिन कर कुछ नहीं पाए। जो अम्बेडकर वादी नेता हैं वो किस चीज का इंतजार कर रहे हैं ? बुढापे में किसके भरोसे बैठ रहे हैं ? कौन से दूसरे धर्म की कामना कर रहे हैं ? जो काम अंत मे करा जाता है वो शुरुआत में ही करें तो बात कुछ और होती। अंत मे उन्होंने कहा कि सरकार को राजनीति के साथ साथ संस्कृति में भी दिलचस्प रखना चाहिए।

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