Uniform Civil Code (UCC)
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यूनिफॉर्म सिविल कोड: Modi’s Nuclear Button

लगभग 73 साल पहले, नवंबर के महीने में दिल्ली के संसद भवन में यूनिफॉर्म सिविल कोड (UCC) को लेकर बहुत विचार विमर्श किया गया था कि इसे संविधान में शामिल किया जाना चाहिए या नहीं, और यह दिन था 23 नवंबर 1948, लेकिन इस पर कोई नतीजा नहीं निकल पाया।

आज लगभग 73 साल बाद भी इस मुद्दे को लेकर कोई निष्कर्ष नहीं निकाला जा सका है। आज जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार है तो देश के तकरीबन हर शहर में चाय के ठेलों से लेकर छोटी-छोटी दुकानों तक यह चर्चा रहती है कि सरकार यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू करेगी, और इसकी एक वजह भी दी जाती है कि “एक देश एक कानून” का विचार आज आमतौर पर हर आदमी के ज़हन में है, कई लोगों को तो इसलिए भी उम्मीद दिख रही है क्योंकि मोदी सरकार अपने अतीत में किए गए सख्त फैसलों के लिए जानी जाती है।

क्या है यूनिफॉर्म सिविल कोड(UCC)?

Uniform civil code जैसा कि नाम से ही पता चलता है कि भारत में रहने वाले हर नागरिक के लिए एक जैसा कानून का होना, फिर चाहे वो किसी भी धर्म या जाति से क्यों ना हो। यूनिफॉर्म सिविल कोड को हिंदी में समान नागरिक संहिता कहते हैं जिसमें शादी, तलाक, जमीन जायदाद के बंटवारे जैसे कई मुद्दों पर कानून, हर धर्म के लोगों के लिए एक ही होंगे, जिसका सीधा सा मतलब है कि यह कानून धर्मनिरपेक्ष है जिसका किसी भी धर्म से संबंध नहीं है।

अभी हर धर्म का अपना अलग कानून है और वह उसी हिसाब से चलता है, हिंदुओं के लिए अपना अलग कानून है जिसमें शादी तलाक और संपत्तियों से जुड़ी कुछ बातें हैं और वही मुसलमानों का अलग पर्सनल लॉ है और इसी तरह ईसाइयों का भी अपना पर्सनल लॉ है।

आपको बता दें कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 44 के भाग 4 में यूनिफॉर्म सिविल कोड शब्द का स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है, और यूनिफॉर्म सिविल कोड के समर्थक बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर थे।

संविधान में इसे लेकर प्रावधान तो है लेकिन यह भारत में लागू नहीं है, भारतीय संविधान के अनुच्छेद 44 के मुताबिक राज्य, भारत के पूरे क्षेत्र में नागरिकों के लिए एक समान नागरिक संहिता को लागू करने का प्रयास करेगा।

गोवा में लागू है UCC

संविधान में गोवा को एक विशेष राज्य का दर्जा दिया गया है और यह एकमात्र भारत का ऐसा राज्य है जहां यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू है।

आपको बता दें कि गोवा पर पुर्तगालियों का कब्ज़ा करीब 450 सालों तक रहा है और पुर्तगालियों ने ही Portugese civil code को लागू किया था और तब से आज तक यहां यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू है। पुर्तगाली गोवा को तो छोड़ कर चले गए लेकिन यूनिफॉर्म सिविल कोड को वहीं छोड़ गए जबकि पुर्तगाल खुद अपने देश में इस कानून को नए सिविल कोर्ट से बदल चुका है।

गोवा में यूनिफॉर्म सिविल कोड के कुछ बिंदु–

गोवा में हिंदू, मुस्लिम और ईसाई समेत सभी धर्मों और जातियों के लिए एक ही कानून है।

  • कोई भी व्यक्ति ट्रिपल तलाक नहीं दे सकता।
  • बिना रजिस्ट्रेशन के शादी कानूनी तौर पर मान्य नहीं होगी और रजिस्ट्रेशन होने के बाद तलाक सिर्फ कोर्ट के जरिए ही हो पाएगा।
  • संपत्ति पर पति और पत्नी दोनों का बराबर से अधिकार होगा, फिर चाहे वह संपत्ति खुद से बनाई हो या फिर विरासत में मिली हो।
  • अभिभावकों को आधी संपत्ति का मालिक अपने बच्चों को बनाना होगा जिसमें बेटियां भी शामिल होंगी।
  • इनकम टैक्स पति और पत्नी दोनों की कमाई को जोड़कर कुल इनकम पर लगाया जाता है।
  • मुसलमानों को चार शादियां करने का अधिकार नहीं है जबकि कुछ शर्तों के साथ हिंदुओं को दो शादी करने की छूट दी गई है।

पूरे भारत में क्यों लागू नहीं हो पाया था UCC?

यूनिफॉर्म सिविल कोड का जिक्र पहली बार 1835 में ब्रिटिश काल में किया गया था जब ब्रिटिश सरकार की एक रिपोर्ट में कहा गया था कि अपराधों, सबूतों जैसे मुद्दों पर समान कानून लाने की जरूरत है। संविधान के अनुच्छेद 44 में सभी नागरिकों के लिए समान कानून लागू करने की बात कही गई है लेकिन फिर भी भारत में अभी तक इसे लागू नहीं किया जा सका, इसका कारण भारत की विविधता है। भारत में हर धर्म के लोग हैं विभिन्न प्रकार की जातियों, समुदायों से संबंधित नागरिक हैं, सब की संस्कृति भी अलग है और इसी वजह से सब के लिए अलग-अलग कानून भी हैं। भारत में तो एक ही घर के सदस्य कभी-कभी अलग-अलग रिवाज़ों को मानते हैं, आबादी के आधार पर हिंदू बहुसंख्यक हैं लेकिन फिर भी अलग-अलग राज्यों में उनके रीति-रिवाजों में काफी अंतर मिलता है।

अगर समान नागरिक संहिता को लागू किया जाता है तो हर धर्म के लिए जो अलग से कानून हैं, वह खत्म हो जाएंगे।

किन देशों में लागू है UCC?

दुनिया भर में ऐसे तमाम देश है जहां समान नागरिक संहिता लागू है, जैसे–

अमेरिका, आयरलैंड, पाकिस्तान, बांग्लादेश, मलेशिया, तुर्किए, इंडोनेशिया, सूडान, मिस्र जैसे कई देशों में लागू है UCC

UCC से मिलने वाले लाभ

देश में जब हर नागरिक के लिए एक जैसा कानून होगा तो देश विकास के पथ पर आगे बढ़ेगा, इसका असर राजनीति पर भी पड़ेगा। कोई भी राजनीतिक दल वोट बैंक वाली राजनीति नहीं कर सकेगी और चुनाव के वक्त वोटों का ध्रुवीकरण भी नहीं होगा।

समान नागरिक संहिता भारतीय नागरिकों को अपने मूलभूत अधिकारों का लाभ उठाने का अधिकार देगा और उन्हें स्वतंत्रता, समानता और न्याय की गारंटी देगा, जैसे–

संवैधानिक मूल्यों का सम्मान

समान नागरिक संहिता संवैधानिक मूल्यों का संरक्षण और सम्मान करेगी। यह समानता, धार्मिक स्वतंत्रता, न्यायपूर्ण व्यवस्था और व्यक्तिगत अधिकारों के संरक्षण की गारंटी देगी।

न्यायपूर्णता

UCC न्यानपूर्णता का संरक्षण करेगी। यह न्यायाधीशों की स्वतंत्रता और अन्याय के खिलाफ संरक्षण की गारंटी देगी।

समानता

यह संहिता भारतीय नागरिकों को अपने मूलभूत अधिकारों के समान रूप से लाभ प्राप्त करने का अधिकार देगी।

क्या होगा UCC लागू होने के बाद?

भारत विविधताओं का देश है। समान नागरिक संहिता को लागू करने के बाद देश में कई बदलाव होंगे, जैसे–

भारत को एकीकृत करेगा

भारत कई धर्मों, रीति-रिवाजों वाला देश है। समान नागरिक संहिता की मदद से भारत और अधिक एकीकृत हो सकेगा।

वोट बैंक वाली राजनीति को कम करने में सहायता होगी

समान नागरिक संहिता लागू होने के बाद वोट बैंक की राजनीति कम हो जाएगी, जो कि ज्यादातर राजनीतिक दल हर चुनाव के दौरान करते हैं।

पर्सनल लॉ एक बचाव का रास्ता है

पर्सनल लॉ की अनुमति देकर एक वैकल्पिक न्यायिक प्रणाली का गठन किया गया है जो अभी भी पुराने मूल्यों पर चल रही है। समान नागरिक संहिता इसे भी बदल देगी।

महिलाओं को मिलेंगे अधिक अधिकार

धार्मिक पर्सनल लॉ महिला विरोधी हैं। समान नागरिक संहिता लागू होने के बाद भारत में महिलाओं की स्थिति सुधरेगी।

सभी भारतीयों के साथ होगा समान व्यवहार

विवाह, विरासत, भूमि आदि से संबंधित हर भारतीय के लिए एक ही कानून होना चाहिए और समान नागरिक संहिता इसी को सुनिश्चित करेगा।

वास्तविक धर्मनिरपेक्षता को मिलेगा बढ़ावा

इस संहिता को लागू करने का यह मतलब बिल्कुल भी नहीं है कि यह लोगों को अपने धर्म का पालन करने की स्वतंत्रता को सीमित कर देगा, बल्कि इसका मतलब सिर्फ यह है कि हर व्यक्ति के साथ एक जैसा व्यवहार किया जाएगा और भारत के सभी नागरिकों को एक जैसे कानूनों का पालन करना होगा।

समान नागरिक संहिता के विरोधियों के क्या है तर्क?

समान नागरिक संहिता के खिलाफ तर्क देने वालों का कहना है कि विवाह, तलाक, उत्तराधिकार आदि जैसे मामले धार्मिक मामले हैं और संविधान ऐसी गतिविधियों की स्वतंत्रता देता है अतः समान नागरिक संहिता का उल्लंघन होगा।

समान नागरिक संहिता के विरोध में एक और भी तर्क है जैसे–

सामान्य दंड

समान नागरिक संहिता के विरोधियों को लगता है कि न्यायिक दंड के प्रतिबंध या उसे सीमित करने के बजाए अपराधियों के प्रति अधिक संवेदनशील होना चाहिए।

मुस्लिम समुदाय क्यों कर रहा है यूसीसी का विरोध?

  • कुछ मुसलमानों को लगता है कि यूनिफॉर्म सिविल कोड उनके धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप करेगा।
  • मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड और अन्य धार्मिक संगठनों का अस्तित्व खतरे में पड़ जाएगा और इसीलिए वह नहीं चाहते कि वह महत्वहीन हो जाएं।
  • संविधान में सभी को अपने धर्म का पालन करने का पूरा अधिकार है और इसीलिए मुस्लिम संगठन इसके विरोध में हैं।
  • मुसलमानों को लगता है कि औरतों को शरीयत में उचित संरक्षण मिला हुआ है, समान नागरिक संहिता की वजह से फिजूल विवाद खड़ा किया जा रहा है।
  • समान नागरिक संहिता विरोधी कहते हैं की हिंदू कानूनों को सभी धर्मों पर लागू किया जाएगा।

 क्यों समान नागरिक संहिता समाज की जरूरत है?

समान नागरिक संहिता किसी भी धर्म को मानने या नहीं मानने पर रोक-टोक नहीं लगाती। कोई भी व्यक्ति किसी भी धर्म के अनुसार शादी करे, चाहे तो हिंदू धर्म के अनुसार या मुस्लिम धर्म के अनुसार, समान नागरिक संहिता इसमें कोई भी हस्तक्षेप नहीं करेगा। समान नागरिक संहिता को अगर राजनीतिक चश्मे के बजाय समाज के नजरिए से देखा जाए तो अधिक बेहतर होगा, क्योंकि इससे भारत देश और भारतीयों का भला ही होगा।

क्या मॉनसून सत्र में पेश होगा समान नागरिक संहिता?

नई संसद भवन में मॉनसून सत्र 17 जुलाई से शुरू हो सकता है और 10 अगस्त तक चलने की संभावना है। मोदी सरकार मॉनसून सत्र में यूनिफॉर्म सिविल कोड का प्रस्ताव पेश कर सकती है, संसदीय मामलों की कैबिनेट समिति की बैठक जुलाई महीने की शुरुआत में हो सकती है।

वहीं उत्तराखंड में समान नागरिक संहिता पर बनी कमेटी ने मसौदा तैयार कर लिया है। कमेटी ने कहा कि हम लोगों ने ड्राफ्ट बना लिया है और बहुत जल्द सरकार को सौंप देंगे, देश के कायदे कानून का हम लोगों ने अध्ययन किया है।

कमेटी ने आगे कहा कि 2 लाख 31 हज़ार लोगों ने इस मामले पर हमें लिखित सुझाव दिए और 20000 लोगों ने व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होकर अपने सलाह दिए। हमें इस दौरान सपोर्ट भी मिला और कुछ विरोध भी दर्ज कराए गए।

कौन सी राजनीतिक दल समर्थन में और कौन सी विरोध में?

अधिकतर विपक्षी पार्टियां समान नागरिक संहिता के विरोध में हैं। इन पार्टियों का मानना है कि समान नागरिक संहिता अल्पसंख्यक समुदायों की धार्मिक स्वतंत्रता का हनन करेगी और इसीलिए समान नागरिक संहिता की जरूरत नहीं है।

विपक्षी पार्टियों का आरोप है कि समान नागरिक संहिता का इस्तेमाल बीजेपी देश पर हिंदू बहुसंख्यकवाद थोपने के लिए करेगी।

कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, जेडीयू, सीपीआई, आरजेडी, समाजवादी पार्टी, सीपीआई(एम) ने इसका खुलकर विरोध किया है तो वहीं आम आदमी पार्टी ने सैद्धांतिक तौर पर इसका समर्थन किया है।

आम आदमी पार्टी के नेता और सांसद संदीप पाठक का कहना है कि, “हमारी पार्टी सैद्धांतिक रूप से इसका समर्थन करती है, आर्टिकल 44 भी इसका समर्थन करता है, क्योंकि यह सभी धर्मों से जुड़ा मामला है ऐसे में इसे तभी लागू किया जाना चाहिए जब इस पर सर्वसम्मति हो”।

समान नागरिक संहिता की याद अचानक से क्यों आई?

इस सवाल पर वरिष्ठ पत्रकार वीर सांघवी न्यूज़ वेबसाइट, “The Print” के लिखे अपने लेख “UCC is Modi’s Nuclear Button” में लिखते हैं कि “आखिर 9 सालों से सत्ता पर काबिज रहने के बाद प्रधानमंत्री मोदी अब इस मुद्दे को क्यों उठा रहे हैं, जबकि बीते 9 सालों के दौरान वह आसानी से इस मुद्दे पर एक गंभीर बहस को बढ़ावा दे सकते थे और मुसलमानों को यह आश्वासन दिला सकते थे कि इस समान न्यायसंगत कानून से इस्लाम को कोई खतरा नहीं होगा?”

 

“जवाब है कि बीजेपी साल 2024 के लोकसभा चुनावों की तैयारी कर रही है, मैंने कुछ ही हफ्ते पहले लिखा था कि मोदी हिंदुत्व को अपने चुनावी मंच का एक बड़ा हिस्सा बनाएंगे और समान नागरिक संहिता बीजेपी का एक न्यूक्लियर बटन है।”

वरिष्ठ पत्रकार प्रदीप सिंह इसके पीछे की दो वजह गिनाते हैं– “पहली वजह की समान नागरिक संहिता जनसंघ के जमाने से बीजेपी के तीन प्रमुख जमीनों में शामिल रहा है।

अनुच्छेद 370 और राम मंदिर यह तो मुझसे लागू होती है तो मात्र बस एक ही एजेंडा बचा हुआ है। ऐसे में बीजेपी के वोटरों के अंदर इस बात की बेचैनी थी कि समान नागरिक संहिता कब लागू होगा? इसलिए यह कोई अचानक से आया हुआ मुद्दा बीजेपी के लिए नहीं है और न बीजेपी को इसकी याद अचानक से आया है।”

दूसरी वजह के बारे में प्रदीप सिंह कहते हैं कि “विपक्षी पार्टियों की बीते 23 जून को बैठक हुई, उस बैठक में इस बात पर तो सहमति बन गई कि सभी पार्टियां साथ चुनाव लड़ेंगी लेकिन किस मुद्दे पर लड़ेंगी यह तय ही नहीं हो पाया, तो विपक्षी पार्टियों से पहले प्रधानमंत्री मोदी ने समान नागरिक संहिता पर बोलकर एक एजेंडा सेट कर दिया और अब कांग्रेस की तरफ से यह बयान आ रहा है कि अगली बैठक यानी 13 और 14 जुलाई में वह इसका जवाब देंगे, यानी कि विपक्ष प्रोएक्टिव होने की बजाय रिएक्टिव हो गया है।”

प्रदीप सिंह आगे बताते हैं कि “साल 1977 और साल 1989 के आम चुनावों में विपक्षी एकता का उदाहरण देते हुए कि यह दो चुनाव मात्र ऐसे चुनाव थे जब भारतीय राजनीति में विपक्षी पार्टियां एकजुट हुई थीं। इसकी प्रमुख वजह भ्रष्टाचार के आरोप और इमरजेंसी थी, साल 1977 में पहले भ्रष्टाचार और फिर इमरजेंसी का आरोप और फिर साल 1989 में बोफोर्स का मुद्दा।”

“इस तरह का कोई बड़ा मुद्दा जो पब्लिक को उत्तेजित करता हो, ऐसा विषय विपक्ष को मिला ही नहीं, इसके उलट अब यूनिफॉर्म सिविल कोड का मुद्दा छेड़कर प्रधानमंत्री मोदी ने विपक्ष में दरार पैदा करती है। आम आदमी पार्टी, शिवसेना, एनसीपी सबके राय अलग-अलग हैं यानी जिस विपक्षी एकता की बात हो रही थी वह इस मुद्दे पर बिखर गया।”

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