Rahul Gandhi
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20 साल बाद राहुल गांधी के बिना कैसा होगा संसद का मानसून सत्र

20 जुलाई 2023 को जब संसद का मानसून सत्र शुरू और 500 से अधिक लोकसभा सांसदों की मौजूदगी होने के बावजूद कहीं न कहीं एक खालीपन जरुर महसूस किया जायेगा. 4 बार से लगातार लोकसभा सांसद रहे पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी लगभग 20 वर्षों में ऐसा पहली बार होगा कि वो इस संसद सत्र में नही होंगे. वैसे तो राहुल गाँधी संसद में सिर्फ एक सांसद की हैसियत से ही सम्मिलित होते थे परन्तु उनके द्वारा बोले गए, संसद में उठाये गए मुद्दों पर न जाए कितनी बार सरकार भी मजबूरन अपने फैसलों पर सोचने को मजबूर हुई है. राहुल गाँधी का इस बार संसद में न होना भी अपने आप में एक प्रमुख विषय रहेगा और पूरी आशंका है कि यह सत्र हंगामेदार भी होगा.

राहुल का न होना…..मोदी की जीत या हार ?

राहुल गाँधी का सदन से निष्कासन हमेशा विवादों में रहा, विपक्ष के तमाम संगठनों ने इस पर अपना विरोध दर्ज कराया लेकिन इन सबके बावजूद राहुल अपनी सदस्यता बचाने में सफल नही हो सके. यह भी माना जा रहा है कि आगामी लोकसभा चुनावों में यह एक बहुत बड़ा मुद्दा भी बनने वाला है ऐसे में इसका क्या प्रभाव रहता है और क्या फायदा कांग्रेस को मिलता है यह देखने का विषय रहेगा | 2004 में जब राहुल पहली बार सांसद बने थे और आज लगभग 20 वर्षों के बाद दोनों ही राहुल में जमीन-आसमान का अंतर है | आज राहुल के पास यह क्षमता है कि वो पूरे देश को जोड़ने की क्षमता रखते हैं. लोग उन्हें सुनना और देखना पहले की अपेक्षा कहीं ज्यादा पसंद करते हैं. लेकिन सवाल यह भी उठता है कि क्या नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार इस निर्णय पर संतुष्ट है या कहीं न कहीं इस घटना का भविष्य में अफ़सोस होने की सम्भावना भी दिखा सकता है. पिछले कुछ वर्षों में खासकर 2019 के कार्यकाल के बाद कई ऐसे मामले सामने आये कई ऐसे विषय और मुद्दे राहुल गाँधी ने आम जनता के सामने रखे जो कि सरकार की जिम्मेदारी पर बनती है. राहुल गाँधी का अपना एक नजरिया है, हो सकता है कई ऐसे मामले जिसमे उनकी पार्टी के लोग सहमति नही रखते होंगे परन्तु उनके नतीजों ने हमेशा राहुल को नजरंदाज होने से बचाया है.

पार्टी में बेहतर सामजस्य करने में भी अहम् रोल

राहुल गाँधी ने देश के सम्बंधित विषयों के अतिरिक्त कई ऐसे मुद्दे जो उनकी पार्टी में विवादों का कारण बने उनमे भी सक्रिय भूमिका निभाई और पार्टी के कई राज्यों में गुटबाजी को समाप्त करने का काम किया. दक्षिण भारत में राहुल गाँधी की लोकप्रियता का आलम ऐसा है कि उनके आगे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी फीके लगते हैं. जिसका ताज़ा उदाहरण कुछ महीनों पहले आयोजित की गयी भारत जोड़ो यात्रा में सभी ने महसूस किया.

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