दिल्ली नगर निगम चुनाव में एक बार फिर जीत हासिल करने के इरादे से भाजपा बेहद गंभीर नजर आ रही है. निगम में चौथी बार जीत हासिल करना कहीं न कहीं बेहद चुनौतीपूर्ण काम है और इसी को देखते हुए भाजपा सावधानी बरतने में भी कोई कोर-कसर नही छोड़ रही है. भाजपा ने अपने 29 राष्ट्रीय पदाधिकारियों को मैदान में उतारा है. जिनके नेतृत्व में स्थानीय नेताओ जिनमे (मंडल प्रभारी,अध्यक्ष, अन्य मंडल पदाधिकारी, पूर्व मंडल अध्यक्ष, पूर्व निगम पार्षद, कम से कम पिछले दो बार के विधानसभा सदस्य या प्रत्याशी, विधानसभा विस्तारक, जिला अध्यक्ष, महामंत्री, जिले के मोर्चे के अध्यक्ष एवं महामंत्री सहित मंडल के कुछ प्रदेश पदाधिकारी भी सम्मिलित है) से लिखित और मौखिक दोनों ही तरीके से राय ली जा रही है.
प्रदेश प्रभारी ने पहले ही तैयारी शुरू कर दी
राय शुमारी और प्रत्याशी चयन की प्रक्रिया पहले ही दिल्ली भाजपा प्रदेश प्रभारी बैजयंत पांडा ने शुरू कर दी है, इसके अतिरिक्त प्रदेश अध्यक्ष, संगठन महामंत्री एवं स्थानीय सांसदों ने भी अपने-अपने लोकसभा क्षेत्रों के प्रत्याशियों हेतु तैयारी शुरू कर दी है. भाजपा इस बात से अवगत है कि लगातार चौथी बार निगम में वापस आना इतना आसान नही रहने वाला है. इसकी गंभीरता को ध्यान में रखते हुए भाजपा लगभग हर मोर्चे पर काम कर रही है, प्रचार से लेकर जमीनी स्तर पर पदाधिकारियों एवं कार्यकर्ताओं को एक्टिव कर दिया गया है.
टिकट वितरण में सांसदों का रहेगा हस्तक्षेप
चूँकि दिल्ली में सभी सातों लोकसभा सीट पर भाजपा के ही सांसद है जिसमे से 5 सांसद ऐसे हैं जो दूसरी बार के सांसद है जिनमे डॉ. हर्षवर्धन, श्रीमती मीनाक्षी लेखी, मनोज तिवारी, रमेश बिधुरी और प्रवेश वर्मा वहीँ पहली बार के सांसद गौतम गंभीर और हंसराज हंस हैं. चूँकि सभी सांसद लोकसभा के है तो ऐसे में सभी सांसदों का स्थानीय क्षेत्र से संपर्क रहता है और वो भी प्रत्याशियों को लेकर बड़ी चर्चा में शामिल होते हैं और अपने द्वारा प्रेषित किये गए नामों को सगंठन के समक्ष प्रस्तुत करते हैं. हालाँकि दिल्ली के दो नये सांसद गौतम गंभीर और हंसराज हंस को लेकर क्षेत्र में बेहद नाराजगी है जिसका सबसे प्रमुख कारण क्षेत्रीय पदाधिकारियों के साथ न तो समन्वय है और न ही आम जनता के साथ. क्षेत्र में उपस्थति भी नगण्य के बराबर रहती है. ऐसे में इनके संसदीय क्षेत्र में इनका कितना हस्तक्षेप होगा यह कहना बेहद मुश्किल है. परन्तु अन्य सभी सांसदों का पूर्ण हस्तक्षेप को देखते हुए यह आशा की जा सकती है कम से कम 50 प्रतिशत प्रत्याशी वह अपनी पसंद के लाने में सफल हो पायेंगे. इसका एक मुख्य कारण यह भी है कि निगम के बाद सीधे 2024 में लोकसभा चुनाव होने हैं ऐसे में सांसद के लिए निगम में अपने प्रत्याशी को चुनाव लड़ाने का फायदा जरुर मिलेगा.
टिकट वितरण में कौन से नेता होंगे सबसे ज्यादा प्रभावी ?
दिल्ली नगर निगम चुनाव इस बार पूर्ण रूप से बदल चूका है इसका सबसे प्रमुख कारण निगम का परिसीमन है. पहले चुनाव 272 सीटों पर लड़ा जाता था और तीन जोनो उत्तरी दिल्ली नगर निगम, दक्षिणी दिल्ली नगर निगम और पूर्वी दिल्ली नगर निगम के अपने-अपने जोन के हिसाब से मेयर नियुक्त किया जाता था परन्तु अब स्थिति बिलकुल बदल चुकी है. अब चुनाव सिर्फ 250 सीटों पर लड़ा जायेगा और साथ ही इस बार मेयर तीन नही बल्कि सिर्फ एक बनेगा, यानि एक मेयर नियुक्त होने का मतलब और अधिक क्षमता होगी या यूँ कहें तो दिल्ली के मुख्यमंत्री के बाद सबसे ताकतवर व्यक्ति होगा. इसलिए इस बार लड़ाई और ज्यादा तेज हो गयी है. यदि भाजपा की बात करें तो स्थानीय सांसद, प्रदेश अध्यक्ष, राष्ट्रीय संगठन महामंत्री, प्रदेश संगठन महामंत्री सहित कुछ अन्य राष्ट्रीय नेताओं का हस्तक्षेप रहने की सम्भावना है.
वहीँ आम आदमी पार्टी की बात करें तो अरविन्द केजरीवाल ही मुख्य व्यक्ति होंगे जिनका अंतिम निर्णय होगा साथ ही दिल्ली प्रभारी दुर्गेश पाठक और सौरभ भरद्वाज, राज्यसभा सांसद संजय सिंह का भी अहम् रोल होगा.