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नवनियुक्त संगठन महामंत्री राणा को चुनाव से पहले गुटबाजी और मुख्यमंत्री पद की गलतफहमी हटानी होगी

नई दिल्ली, दिल्ली प्रदेश भाजपा मे बदलाव का समय चल रहा है, हाल ही मे कार्यकारी अध्यक्ष के तौर पर ज़िम्मेदारी संभाल रहे वीरेंद्र सचदेवा को भाजपा दिल्ली प्रदेश का अध्यक्ष नियुक्त किया गया था और अब दिल्ली भाजपा मे संगठन महामंत्री भी बदल दिया गया है। वर्ष 2015 से दिल्ली प्रदेश भाजपा संगठन की ज़िम्मेदारी का निर्वाहन कर रहे सिद्धार्थन को हिमाचल प्रदेश की इकाई संगठन महामंत्री नियुक्त किया गया है। सिद्धार्थन की जगह पर हिमाचल प्रदेश इकाई संगठन मंत्री पवन राणा को दिल्ली प्रदेश भाजपा का नवनियुक्त संगठन महामंत्री बनाया गया है |

पवन राणा पिछले 11 वर्षों से हिमाचल प्रदेश मे सक्रिय सगठन की ज़िम्मेदारी का निर्वाहन कर रहे हैं, हालांकि राणा के बारे मे हिमाचल प्रदेश मे मिली-जुली चर्चाएँ रहीं हैं, राणा को वर्ष 2012 मे हिमाचल प्रदेश की ज़िम्मेदारी सौंपी गयी थी, इन 11 वर्षों के कार्यकाल मे हिमाचल प्रदेश के कई बड़े नेताओं के निशाने पर भी रहे एवं जब हिमाचल मे भाजपा की सरकार थी उस समय भी उनकी कार्यशैली पर कई सवाल उठाए गए थे। हिमाचल की कुछ बहुचर्चित विधानसभाओं खासकर अर्की और ज्वालाजी मे पवन राणा को लेकर कई तरह के विवाद देखने को मिले थे। कई ऐसे मौके भी सामने आए जब हिमाचल प्रदेश के अन्य पदाधिकारियों और नेताओं ने उनके खिलाफ मोर्चा तक खोल दिया था।

हिमाचल से बड़ी चुनौतीदिल्ली

अब पवन राणा दिल्ली की राजनीति को किस नजरिए से देखते है और उसको समझने के लिए किस प्रकार योजना बनाते हैं ये देखने का विषय रहेगा। सिद्धार्थन ने अपने कार्यकाल मे निगम से लेकर लोकसभा चुनावों मे भाजपा की जीत मे बड़ी अहम भूमिका निभाई थी परंतु सिद्धार्थन भी दिल्ली प्रदेश भाजपा की गुटबाजी को काबू करने मे असफल रहे और नतीजतन हाल ही मे सम्पन्न हुए निगम चुनाव मे भाजपा को अपनी निगम की सत्ता गंवानी पड़ी। दिल्ली भाजपा को यदि पुनः सत्ता का सपना साकार करना है तो गुटबाजी को काबू करना अत्यंत आवश्यक है, पवन राणा के लिए भी गुटबाजी की चुनौती से पार पाने के लिए आग मे नंगे पैर चलने से कम कठिन नहीं होगा, दिल्ली भाजपा मे गुटबाज़ी का आलम यह है कि हर पदाधिकारी अपनी शक्ति का समूहनात्मक प्रदर्शन करता है, प्रदेश अध्यक्ष, प्रदेश महामंत्री, सांसदों और विधायकों के अपने गुटबाजी समूह है। आलम यह है कि दिल्ली मे किसी भी चुनाव मे एक अलग स्तर का ही घमासान देखने को मिलता है, 2017 निगम चुनाव के दौरान सांसदों कि आपस मे झड़प सामने आई थी इस बार निगम चुनाव मे 2 सांसदों मे प्रदेश सह प्रभारी को इस्तीफा तक देने कि धमकी दे डाली |

मैं भी मुख्यमंत्री का दावेदार

दिल्ली मे गुटबाजी के साथ साथ एक और सबसे बड़ी बीमारी मुख्यमंत्री दावेदार होने की, वैसे तो भाजपा मे राष्ट्रीय अध्यक्ष भी स्वयं को अदना सा कार्यकर्ता कहते हुए लाखों-लाख कि जनसभाओं को संबोधित करते हैं परंतु दिल्ली भाजपा मे ऐसा कुछ नही है, दिल्ली भाजपा मे कुल 8 विधायकों मे लगभग 4 स्वयं को मुख्यमंत्री पद के दावेदार मानते हैं, प्रदेश पदाधिकारियों का भी यही आलम है शीर्ष के लगभग सभी पदाधिकारी स्वयं को उच्च कोटि का नेता मानते हुए मुख्यमंत्री पद का सबसे उत्तम दावेदार मानते हैं। इन सबके बाद दिल्ली मे भाजपा के सभी 7 सासदों मे शायद ही कोई ऐसा है जिसे अपने मुख्यमंत्री कि दावेदारी मे कोई शक या संका हो, हालांकि वो बात अलग है कि वो अपनी ही लोकसभा के जिलाधिकारियों को छोड़ दे तो शायद मण्डल अध्यक्ष को भी ठीक से नही पहचानते होंगे और अगर पहचाने भी हैं तो नाम बताना उनके लिए टेढ़ी खीर से कम नहीं है।

आगामी लोकसभा चुनाव पवन राणा के लिए पहली चुनौती होगी, चुनाव के लिहाज से उनके लिए बड़ी चुनौती नही है क्योंकि चुनाव सिर्फ प्रधानमंत्री के नाम पर ही लड़ा जायेगा, परंतु सांसदों की अपने ही लोकसभा क्षेत्र मे खराब छवि एक बड़ी चुनौती है ऐसे मे एक-दो सीट का इधर उधर होना पवन राणा के भविष्य को अंधकार मे ला सकता है |

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