नई दिल्ली, 19 दिसंबर 2023, भारतीय संसद में हाल के दिनों में अभूतपूर्व स्तर पर व्यवधान और सदस्यों का निलंबन देखा गया है। 18 दिसंबर, 2023 को, दोनों सदनों से रिकॉर्ड 78 सदस्यों को निलंबित किए जाने के ठीक एक दिन बाद, 50 और विपक्षी सांसदों को संसद के निचले सदन लोकसभा से निलंबित कर दिया गया। इससे निलंबित सदस्यों की कुल संख्या चौंका देने वाली 128 हो गई है, जो भारत में संसदीय कार्यवाही के लिए एक काला दिन है।
नवीनतम निलंबन सरकार द्वारा अर्थव्यवस्था को कथित तौर पर ठीक से नहीं संभालने और बढ़ती मुद्रास्फीति सहित विभिन्न मुद्दों पर लोकसभा में हंगामे के कारण हुआ है। विपक्षी सदस्यों ने नारे लगाकर, कागजात फाड़कर और अध्यक्ष के आसन पर चढ़कर विरोध जताया। इससे अराजकता और व्यवधान उत्पन्न हुआ, जिसके कारण अध्यक्ष को सांसदों को निलंबित करने का कठोर कदम उठाना पड़ा।
निलंबित सदस्यों में विभिन्न विपक्षी दलों के प्रमुख नेता शामिल हैं, जिनमें सुप्रिया सुले (राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी), फारूक अब्दुल्ला (नेशनल कॉन्फ्रेंस), शशि थरूर (कांग्रेस), दानिश अली (समाजवादी पार्टी), कार्ति चिदंबरम (कांग्रेस), और सुदीप बंधोपाध्याय शामिल हैं। (तृणमूल कांग्रेस).
सांसदों के सामूहिक निलंबन की विपक्ष ने तीखी आलोचना की है, जिन्होंने सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) पर असहमति को दबाने और उनकी आवाज को दबाने की कोशिश करने का आरोप लगाया है। उन्होंने निलंबन को “लोकतंत्र पर हमला” और “संसदीय बहस को दबाने का जानबूझकर किया गया प्रयास” करार दिया है।
दूसरी ओर, भाजपा ने निलंबन का बचाव करते हुए तर्क दिया है कि सदन में व्यवस्था और शिष्टाचार बनाए रखने के लिए ये आवश्यक थे। उन्होंने विपक्ष पर विघटनकारी होने और सरकार को प्रभावी ढंग से काम करने से रोकने का आरोप लगाया है।
चल रहे व्यवधानों और निलंबन ने भारत में संसदीय लोकतंत्र की स्थिति के बारे में गंभीर चिंताएँ पैदा कर दी हैं। सरकार को जवाबदेह ठहराने की विपक्ष की क्षमता लगातार बाधित हो रही है, और सार्थक बहस और असहमति की जगह कम होती जा रही है।
यह देखना बाकी है कि यह राजनीतिक संकट कैसे सामने आएगा और भारतीय लोकतंत्र पर इसका दीर्घकालिक प्रभाव क्या होगा।
विचार करने के लिए यहां कुछ अतिरिक्त बिंदु दिए गए हैं:
- निलंबित सांसद अपने निलंबन की अवधि के दौरान संसद में उपस्थित नहीं हो पाएंगे, जो कुछ दिनों से लेकर कई हफ्तों तक हो सकती है।
- विपक्ष निलंबन के विरोध में संसद सत्र के शेष दिनों का बहिष्कार करने की योजना बना रहा है।
- यह पहली बार नहीं है कि सांसदों को संसद से निलंबित किया गया है। हालाँकि, हालिया निलंबन का पैमाना अभूतपूर्व है।
निलंबन के संभावित प्रभाव
निलंबन के संभावित प्रभाव निम्नलिखित हो सकते हैं:
- सरकार को जवाबदेह ठहराने की विपक्ष की क्षमता कम हो जाएगी।
- सार्थक बहस और असहमति की जगह कम हो जाएगी।
- संसदीय लोकतंत्र की स्थिति कमजोर हो जाएगी।
निष्कर्ष
भारतीय संसद में हालिया निलंबन एक गंभीर घटना है जिसने संसदीय लोकतंत्र की स्थिति के बारे में गंभीर चिंताएँ पैदा कर दी हैं। यह देखना बाकी है कि यह राजनीतिक संकट कैसे सामने आएगा और इसका दीर्घकालिक प्रभाव क्या होगा।