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निवेश करने से पहले न्यूनतम और अधिकतम अवधि समझना जरुरी, नहीं तो होगा बड़ा आर्थिक नुकसान

वर्ष 2019 के अंत में पूरे विश्व ने मौत का ऐसा मंजर देखा था कि उसे याद करके आज भी लोगों की रूह काँप जाती है. हालात बद से बदतर हो गए थे, कई ऐसे परिवार भी थे जिनके एक सदस्य भी कोरोना जैसी भयानक महामारी में खुद को बचाने में सफल नहीं हो सके थे. आज इस त्रासदी को 3 वर्ष से अधिक समय हो चुका है, इन सबमे अगर आम जनता को या खासकर मध्यम वर्ग को जो सबक मिला है वो यह है कि किसी भी आपदा में निपटने के लिए धन संचय होना बेहद जरुरी है. यदि आपने अपने धन का संचय किसी सही जगह पर नहीं किया है तो आपके लिए संकट के समय और अधिक परेशानी उत्पन्न होती है. हालाँकि मध्यम वर्ग में निवेश को लेकर अब सतर्कता बढ़ी है और पिछले 1-2 वर्षों में कई तरह के निवेश में लोग अपनी किस्मत आजमा रहे हैं.

लगभग 2 वर्ष की लम्बी अवधि में जो निवेश लम्बी अवधि के थे वो अन्य की तुलना में काफी बेहतर कर रहे हैं. लम्बी अवधि के निवेश में लगभग-लगभग 10 फीसदी तक का रिटर्न भी प्राप्त हुआ है. इस तरह के आंकड़े जब सामने आते हैं तो निवेशकों को हौसला मिलता है और उन्हें अधिक निवेश की प्रेरणा भी मिलती है. लेकिन सिर्फ खबरों को पढ़कर निवेश करना बिल्कुल भी समझदारी का निर्णय नहीं हो सकता, आप जब भी इस तरह अपने पैसों को निवेश में लगाना चाहे तो पहले उसके बारे में अच्छी रिसर्च करें और इसको लेकर किसी भी प्रकार के जोखिम को समझने के बाद ही निर्णय लें.

भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) के अनुसार यदि हम अपने निवेश की ओर अग्रसर होंगे तो जाहिर है भविष्य में आर्थिक संकट अर्थात पैसों के नुकसान का खतरा काफी संकीर्ण हो जाता है. सेबी कहता है कि यदि आप लम्बी अवधि में अगर पैसा निवेश करना चाहते हैं तो भी इसकी अवधि 10 साल से अधिक नहीं होनी चाहिए बल्कि सुरक्षित अवधि सामान्यतः 6 से 10 वर्ष के मध्य की होती है. ऐक्सिस म्युचुअल फंड के सह-प्रमुख (फिक्स्ड इनकम) देवांग शाह कहते हैं, ‘इनमें से अधिकतर फंडों ने अपने पोर्टफोलियो का एक बड़ा हिस्सा सरकारी बॉन्ड अथवा राज्य विकास ऋण (राज्य सरकार के बॉन्ड) में निवेश किया है क्योंकि भारत में कंपनियां आम तौर पर लंबी अवधि के ज्यादा बॉन्ड जारी नहीं करतीं.’ हालाँकि पिछले कुछ साल में यदि आर्थिक संकेतकों पर गौर किया जाये तो इसमें काफी सुधार देखा गया है.

फेडरल रिजर्व के यदि बयानों पर गौर किया जाये तो पता चलता है कि अमेरिका में ब्याज दरें वर्तमान समय में अपने चरम पर हैं. जेपी मॉर्गन बॉन्ड सूचकांक में शामिल होने से भी भारतीय सरकारी बॉन्डों को फायदा होगा. चालू कैलेंडर वर्ष की दूसरी छमाही में दरें घटना शुरू हो सकती हैं. इसी उम्मीद में पिछले एक साल के दौरान बॉन्ड बाजार की यील्ड 25 से 35 आधार अंक बढ़ गई. लम्बी अवधि के फंडों की अवधि अधिक होने के कारण यील्ड बढ़ने का असर और भी ज्यादा हो जाता है.

फंड मैनेजरों को ब्याज दरों में कटौती की उम्मीद भी बहुत अधिक है. शाह का कहना है, ‘भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने अपनी मौद्रिक नीति रिपोर्ट में अनुमान लगाया है कि अगले साल (2024-25) मुद्रास्फीति 4.5 फीसदी रहेगी. रीपो रेट फिलहाल 6.5 फीसदी है. 10 साल के सरकारी बॉन्डों का यील्ड अब भी 7 फीसदी से ऊपर है. हमारे हिसाब से ब्याज दरें नीचे आनी चाहिए.’ उन्हें उम्मीद है कि अगले 12 से 18 महीनों में 10 साल के बॉन्ड की यील्ड 6.5 से 6.75 फीसदी रह सकती है.

आम तौर पर दो तरीके के निवेशक इन फंडों में निवेश कर सकते हैं. प्लान अहेड वेल्थ एडवाइजर्स के मुख्य वित्तीय योजनाकार विशाल धवन समझाते हैं, ‘पहली श्रेणी के निवेशक ब्याज दर के चक्र का फायदा उठाना चाहते हैं और दोबारा बढ़ोतरी होने पर अपना निवेश समेटने के लिए तैयार रहते हैं.’ मगर इन्हें ध्यान रखना चाहिए कि निवेश कब करना और कब समेटना है वरना उन्हें घाटा हो जाएगा.

दूसरी श्रेणी वाले निवेशक लंबी अवधि में धीरे-धीरे ब्याज दरें घटने की उम्मीद करते हैं. धवन की सलाह है, ‘उन्हें लंबी अवधि के लिए निवेश करने के साथ ही समय-समय पर दिखने वाले उतार-चढ़व से निपटने के लिए तैयार रहना चाहिए.’

सेन का कहना है कि कम अवधि के निवेशकों को कम से कम छह महीने से एक साल तक के लिए निवेश करना चाहिए. लंबी अवधि के निवेशकों के लिए निवेश की अवधि कम से कम 10 साल और उससे अधिक होनी चाहिए.

निवेशकों को इन फंडों में निवेश करने से पहले डेट बाजार की बारीकियां समझ लेनी चाहिए. सेन समझाते हैं, ‘उन्हें समझना चाहिए कि इन फंडों में ज्यादा रिटर्न कहां से आया है और पिछला रिटर्न देखकर ही रकम नहीं लगा देनी चाहिए. निवेश करते समय यह भी देखना चाहे कि सही परिपक्वता अवधि क्या होगी.’ धवन की राय में ऐसा फंड सही रहेगा, जिसके फंड मैनेजरों को कई ब्याज दर चक्र का अनुभव हो और जिसका व्यय अनुपात सबसे कम हो.

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