पिछले दिनों राज्य निर्वाचन आयोग, दिल्ली ने एमसीडी चुनावों की घोषणा कर पूरी दिल्ली में हलचल पैदा कर दी, सभी का अनुमान यही लग रहा था कि चुनाव गुजरात विधानसभा में संपन्न होने के बाद दिल्ली की बारी आयेगी लेकिन चुनाव आयोग ने इस मामले में और देरी न करते हुए 4 दिसंबर को ही चुनाव कराने की घोषणा कर दी.
भाजपा ने शुरू की तैयारियाँ
आम जनता से लेकर अन्य सभी राजनैतिक पार्टियाँ अच्छे से जानती है कि भारतीय जनता पार्टी चुनावों को लेकर कितना गंभीर रहती है. चुनाव छोटा हो या बड़ा इससे भाजपा को कोई खास फर्क नही पड़ता है, वही सभी चुनावों को गंभीरता से लेती हैं और शायद इसीलिए लगभग हर दूसरे चुनाव में उन्हें जीत मिलती है. ऐसा ही कुछ दिल्ली एमसीडी चुनाव में भी देखने को मिल रहा है. चुनाव आयोग के द्वारा तारीखों के एलान के बाद से ही भाजपा ने अपने उम्मीदवारों को लेकर कसरत शुरू कर दी है.
भाजपा के दिल्ली प्रदेश प्रभारी बैजयंत पांडा ने सोमवार, 7 नवम्बर को ही दिल्ली के सभी सांसदों के साथ बैठक कर उम्मीदवारों पर एक विस्तृत बैठक लेंगे. बताया गया है कि बैजयंत पांडा सभी सांसदों के साथ व्यक्तिगत बैठक कर, उनके लोकसभा के सभी वार्डों के अनुसार संभावित उम्मीदवारों पर चर्चा करेंगे. यह बैठक लगभग 1 से 2 घंटे तक चलेगी. उसके बाद बैजयंत पांडा अपनी एक रिपोर्ट तैयार कर संगठन को सौपेंगे.
संगठन महामंत्री सिद्धार्थन पर सारा दारोमदार
वही इस चुनाव में प्रदेश अध्यक्ष आदेश गुप्ता के साथ-साथ प्रदेश संगठन महामंत्री सिद्धार्थन का भी उम्मीदवारों के चयन में बेहद महत्वपूर्ण भूमिका रहेगी. सिद्धार्थन पिछले 7 वर्षों से पार्टी के संगठन महामंत्री की जिम्मेदारी का निर्वहन कर रहे हैं. जुलाई, 2015 में उन्हें निवर्तमान दिल्ली प्रदेश संगठन महामंत्री विजय शर्मा की जगह पर बनाया गया था. जबकि सिद्धार्थन संगठन महामंत्री बनने से पहले भी दिल्ली में लगभग 24 वर्षों तक सक्रिय रहते हुए आरएसएस के लिए कार्य किया. सिद्धार्थन पहले आरएसएस के दक्षिणी दिल्ली विभाग में प्रचारक के तौर पर जिम्मेदारी का निर्वाहन कर रहे थे तत्पश्चात उन्होंने पूर्वी दिल्ली में भी यही जिम्मेदारी निभाई थी. इसलिए दिल्ली के अधिकतर पुराने कार्यकर्ताओं और पदाधिकारियों के साथ उनका पुराना परिचय है जिसका लाभ भी उन्हें मिलेगा.
सांसदों के साथ-साथ जिलाध्यक्षों की भी अहम् भूमिका
भाजपा संगठनात्मक स्तर पर अन्य राजनैतिक पार्टियों की तुलना में सबसे अधिक मजबूत दिखती है. यदि इसी एमसीडी चुनाव को मद्देनजर रखा जाये तो आपको स्पष्ट होगा कि निगम चुनाव में सिर्फ सांसद या वरिष्ठ नेताओं का चयन ही अंतिम चयन नही माना जाता है, बल्कि भाजपा जिलाध्यक्षों का भी बेहद महत्वपूर्ण स्थान रहने वाला है, चूँकि हाल ही में परिसीमन संपन्न हुआ है और 22 वार्डों की संख्या भी कम हुई है, वहीँ कई वार्ड के क्षेत्र इधर से उधर हो गए हैं ऐसे में जिलाध्यक्ष ही है जो अपने मंडल अध्यक्ष की सहायता से एक जमीनी रिपोर्ट तैयार कर संगठन को सौंपेगा. कम से कम एक वार्ड 3 उम्मीदवारों के नाम प्रदेश संगठन को जिला अध्यक्ष के द्वारा सौंपा जायेगा और सांसद से भी कम से कम तीन नाम एक वार्ड से मांगे जायेंगे. उसके बाद ही उमीदवारों पर कोई निर्णय लिया जायेगा.
प्रदेश अध्यक्ष से लेकर जिलाध्यक्ष, सब उम्मीदवारी लड़ाई में, फिर कार्यकर्ताओं के साथ नाइंसाफी ?
भाजपा के सामने सबसे बड़ी चुनौती एक यह भी रहेगी कि किसको टिकट दिया जाये और किसको बैठाया जाये, हालाँकि यह हर बार होता है और एक स्वाभाविक प्रक्रिया है यकीन मामला तब और कठिन हो जाता है जब आपके पदाधिकारी ही उम्मीदवारों से ज्यादा टिकट की आस लगा लें, ऐसे में सामान्य कार्यकर्ता का मनोबल ऐसे ही कमजोर हो जाता है जब वो यह देखता है कि उससे कहीं ज्यादा पहुँच रखने वाला या यु कहें टिकट बाँटने वाला ही खुद टिकट मांग रहा है. भाजपा प्रदेश अध्यक्ष आदेश गुप्ता खुद भी टिकट के प्रमुख दावेदार है तो वहीँ प्रदेश के कुछ और भी सदस्य ऐसे है जो इस बार एमसीडी चुनाव में अपनी किस्मत आजमाना चाहते हैं, वहीँ लगभग 5-6 जिलाध्यक्ष भी ऐसे है जो अपने लिए या अपनी पत्नी और बेटे के लिए टिकट की चाह रखते हैं, ऐसे में बड़ा सवाल यह पैदा होता है जब टिकट देने वाला ही खुद लालसा रखता है तो ऐसे में कार्यकताओ के साथ नाइंसाफी नही तो और क्या ?