केन्द्र सरकार की ओर से तीन कृषि कानूनों को निरस्त की घोषणा के बाद किसान संगठनों में हलचल मची हुई है, खासकर बीकेयू के प्रवक्ता राकेश टिकैत जो इस आन्दोलन का प्रमुख चेहरा बने हुए हैं उनके चेहरे पर साफ़ बैचेनी देखि जा सकती है, कभी उल्टे सीधे बयान तो कभी मीडियाकर्मियीं के साथ बदसलूकी | कल राकेश टिकैत ‘कौर (कोर) किसान’ नाम के एक संगठन की ओर से आयोजित अंतरराष्ट्रीय वेबिनार में शामिल हुए और इस वेबिनार में राकेश टिकैत के अलावा कई खालिस्तानी भी शामिल हुए।
इस वेबिनार में टिकैत के अलावा खालिस्तानी समर्थक मो धालीवाल, आईएसआई के लिए काम करने वाला पीटर फ्रेडरिक, मोनिका गिल, प्रीत कौर गिल, आसिस कौर, क्लाउडिया वेबबे समेत कई अन्य भी इसमें शामिल रहे। ये सभी यहाँ पर किसान आंदोलन की आड़ में देश विरोधी गतिविधियों को भड़का रहे थे।
जूम मीटिंग में‘कौर फार्मर्स’ की मेज़बान राज कौर ने टिकैत को एक हीरो के रूप में पेश करने की कोशिश में रहीं | कृषि कानून के निरस्त होने से खुश हैं या नहीं यह पूछे जाने पर टिकैत ने कहा, “वे कानूनों को निरस्त कर रहे हैं। लेकिन कई मुद्दे अभी भी हैं। कई अन्य मुद्दे हैं जैसे एमएसपी, प्रदर्शनकारियों की मौत और बहुत कुछ, जिसपर सरकार से बातचीत होनी चाहिए। टिकैत अपनी बातों पर अडिग दिखे कि आंदोलन को जारी रखा जाना चाहिए।”
हालाँकि, टिकैत की बात पर हैरान होने की जरूरत नहीं है क्योंकि कथित किसान नेता ने इससे पहले 5 दिसंबर, 2021 को ये एलान कर दिया था कि आंदलनकारियों का अगला टारगेट बैंकों का निजीकरण होगा। इसके अलावा टिकैत ये भी एलान कर चुके हैं कि 2024 में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले किसी भी सूरत में वो आंदोलन को खत्म नहीं होने देंगे। कुल मिलाकर वे सुर्खियों में बने रहने के लिए कोई न कोई बवाल करते ही रहते हैं।
वेबिनार के दौरान राकेश टिकैत से पूछा गया कि किसान कृषि कानून से पहले भी आत्महत्या करते थे, उसको लेकर किसानों के यूनियन क्या कर रहे हैं? टिकैत ने इस सवाल की कल्पना शायद नहीं की थी, इसलिए वो थोड़े हड़बड़ाए। हालाँकि, बाद में दावा किया कि किसानों को उनकी उपज का उचित लाभ नहीं मिलता था। खर्चे बढ़ने के कारण किसानों को आर्थिक दिक्कतों का सामना करना पड़ा और इसी कारण वो आत्महत्या करने के लिए मजबूर हुए।
इस वेबिनर में आईएसआई के गुर्गे पीटर फ्रेडरिक को ‘इतिहासकार और लेखक’ के तौर पर पेश किया गया। फ्रेडरिक ने दावा किया कि किसी ने नहीं सोचा होगा कि किसान आंदोलन मोदी सरकार को पीछे धकेल सकता है। उसने पीएम मोदी को इशारों में खलनायक करार दिया और कहा, “किसानों का विरोध सिर्फ एक अध्याय है। असली खलनायक अभी भी सत्ता पर काबिज है। हमने लड़ाई जीत ली है, लेकिन युद्ध जारी रहना चाहिए।” केंद्र सरकार को फासीवादी करार देते हुए फ्रेडरिक ने मुस्लिमों और ईसाईयों पर हमले किए जाने का दावा करते हुए किसान आंदोलनकारियों से इनका समर्थन करने की अपील की और ‘आज़ादी की ओर बढ़ने’ का आह्वान किया। लेकिन यह समझ से परे है कि वो किस आजादी की बात कर रहा था।